मकान और घर
जहाँ पूरा विश्व एक परिवार है
श्री माताजी के छोटे भाई हेमंत प्रसाद राव ("हि.प्र.") साल्वे अक्सर, अपनी लेखा परीक्षा की तैयारी के दौरान, उनके साथ रहे। श्री साल्वे ने उस समय उनकी बहन द्वारा दिए गए ध्यान और देखभाल को याद किया, और स्वयं देर तक जागकर, उन्हें उनकी आदतन आधी रात की चाय बनाने के लिए। वह पहले अपनी बेटियों को सुलाती, फिर "... लगभग एक घंटे तक मेरे सिर की मालिश करने के बाद वह जातीं और एक कप गर्म चाय बनाकर मुझे देतीं।" [1]
अपने भाई की परीक्षा के बाद, श्री माताजी उन्हें प्रख्यात संगीतकारों के संगीत समारोहों में ले गयीं। वह सुर सिंगर संसद की प्रारंभिक उपाध्यक्ष थीं, जो संगीत प्रदर्शन को बढ़ावा देने वाली एक सांस्कृतिक संस्था थी (वह अब फेसबुक पर पाई जा सकतीहै), साथ ही साथ बॉम्बे के म्यूजिक क्लब की सदस्य भी थीं, और उन्हें अक्सर विभिन्न संगीत समारोहों में आमंत्रित किया जाता था। श्री साल्वे ने बिस्मिल्लाह खान, आमिर खान, भीमसेन जोशी, शिवकुमार शर्मा और विलायत खान जैसे महान कलाकारों को सुनने का अपार सौभाग्य याद किया। वर्षों बाद, कई प्रसिद्ध संगीतकारों ने श्री माताजी के लिए व्यक्तिगत रूप से बजाया, जैसे अमजद अली खान, हरिप्रसाद चौरसिया और देबू चौधरी।
1961 में, श्री माताजी ने युवा लोगों में राष्ट्रीय, सामाजिक और नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने के लिए 'फिल्मों के लिए युवा समाज' का शुभारंभ किया। वह मुंबई में फिल्म सेंसर बोर्ड की सदस्य भी थीं।
"... श्री माताजी ने लखनऊ में घर बनाना शुरू किया था," एच.पी. साल्वे ने याद किया। जब वह थोक में संगमरमर खरीदने के लिए जबलपुर जातीं थीं, तो वह अक्सर उनके साथ जाते थे और, उनके स्रोत पर उच्च गुणवत्ता, और एक उत्कृष्ट मूल्य पर सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन सामग्री प्राप्त करने की व्यावहारिक क्षमता पर, ध्यान देते थे। यह कौशल वर्षों तक उपयोगी रहा, क्योंकि श्री माताजी ने कई अलग-अलग घरों के निर्माण और नवीनीकरण की देखरेख की। जीर्ण-शीर्ण संपत्तियों को लेना और उनकी मरम्मत कराना, श्री माताजी के बाद के जीवन की एक विशेषता बन गई, जैसे क्षतिग्रस्त व्यक्तियों का अपने घर में स्वागत करना और उन्हें संतुलन और स्वास्थ्य में वापस लाने की उनकी क्षमता के समान।
श्री साल्वे ने अपने संस्मरण में लिखा है, “संगमरमर आदेशित करने के बाद हम अपने रिश्ते की बहन से मिलने गए। उनकी बेटी स्थानीय रॉबर्टसन कॉलेज में एक प्रोफेसर की छात्रा निकली, जो आध्यात्मिक प्रवचन देते थे । श्री माताजी के अध्यात्म की ओर झुकाव को जानकर, मेरी रिश्ते की बहन ने श्री माताजी और प्रोफेसर के बीच एक बैठक की व्यवस्था की। निर्मला को देखकर वह हाथ खोलकर उनकी ओर दौड़े और बोले : 'अरे माँ,.. मैं कब से आपसे मिलने के लिए बेताब हूँ! और आज मेरा सपना पूरा हो गया है।' इतना कह कर उन्होंने श्री माताजी के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। मैं इस सब का व्यक्तिगत गवाह था, और मेरी रिश्ते की बहन और उनकी बेटी भी।"
यह 1961 की बात है, अभी वह समय नहीं था जब निर्मला अपना आध्यात्मिक कार्य शुरू करतीं। एक प्यारी और समर्पित पत्नी और माँ,उन्होंने अपनी दोनो बेटियों के बड़े होने और शादी होने तक का इंतजार किया।
विश्व को व्यवस्थित करने के लिए, हमें सबसे पहले राष्ट्र को व्यवस्थित करना होगा; राष्ट्र को व्यवस्थित करने के लिए, हमें परिवार को व्यवस्थित करना होगा; परिवार को व्यवस्थित करने के लिए, हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को विकसित करना चाहिए; और अपने व्यक्तिगत जीवन को विकसित करने के लिए, हमें सबसे पहले अपने दिलों को सही करना चाहिए।
कन्फ्यूशियस
- ^ एच. पी. साल्वे, 'मेरे संस्मरण' नई दिल्ली: लाइफ इटरनल ट्रस्ट, 2000।